ज्योतिषशास्त्र में फलित ज्योतिष ज्ञान के लिए तिथि नक्षत्र योग के अलावा करण की भी आवश्यकता होती है। तिथि के आधे भाग को करण कहते हैं अर्थात एक तिथि में दो करण होते हैं और कुल ग्यारह करण होते हैं। इनमे पहले के 7 करण चर संज्ञक और बाद के 4 करण स्थिर संज्ञक हैं। इन ग्यारह करणों तथा उनके स्वामियों के नाम इस प्रकार हैं।
क्रमांक | करण | स्वामी |
1 | बब | इंद्र |
2 | बालव | ब्रम्हा |
3 | कौलव | सूर्य |
4 | तैतिल | सूर्य |
5 | गर | पृथ्वी |
6 | वणिज | लक्ष्मी |
7 | विष्टि(भद्रा) | यम |
8 | शकुनि | कलियुग |
9 | चतुष्पद | रुद्र |
10 | नाग | सर्प |
11 | किंस्तुघ्न | वायु |
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