ज्योतिष शास्त्र के अनुसार नक्षत्रों को संज्ञाओं के आधार पर वर्गीकृत किया गया है।जैसे कि ध्रुव संज्ञक नक्षत्र, चर संज्ञक नक्षत्र, उग्र नक्षत्र,
मिश्र नक्षत्र या स्थिर संज्ञक नक्षत्र, क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र,मृदु संज्ञक नक्षत्र आदि। किस नक्षत्र पर कौनसा विशेष कार्य करना शुभ होता है इसका निर्धारण इन्ही संज्ञाओं के आधार पर किया जाता है।
ध्रुव संज्ञक नक्षत्र: रोहिणी, उत्तरा फलगुनी, उत्तराषाढ़,उतरा भाद्रप्रद यह चार नक्षत्र ध्रुव या स्थिर संज्ञक नक्षत्र है इन नक्षत्रों में स्थिर कार्य जैसे कि रूद्राभिषेक,ग्रह प्रवेश,व्यापार आरंभ,बीज बोना, ग्रह शांति ,विधा आरंभ,नए वस्त्र ,आभूषण खरीदना मित्रता आदि कार्य करना
शुभ होता है।
चर संज्ञक नक्षत्र: स्वाति, पुनर्वसु,श्रवण,घनिष्ठा और शतभिषा यह पांच नक्षत्र चर संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं। इनमे सवारी करना,मंत्र सिद्धि, हल जोतना,हाथी, घोड़ा,कार आदि की सवारी करना ,
दुकान खोलना,वस्तु की बिक्री करना, बागवानी आदि कार्य किए जा सकते हैं।
उग्र संज्ञक नक्षत्र: पूर्वा फाल्गुनी, पूर्वाषाढ़, पूर्वा भाद्रपद,भरणी और मघा इन पांच नक्षत्रों को उग्र या क्रूर संज्ञक नक्षत्र कहते हैं। इनमें उग्र कार्य जैसे कि तांत्रिक प्रयोग,मुकदमा दायर करना, शत्रुता, शस्त्र प्रयोग,अग्नि दहन,बलि देना आदि कार्य किए जाते हैं।
मिश्र नक्षत्र: विशाखा और कृतिका यह दो नक्षत्र मिश्र संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं। इसमें अग्निहोत्र,यज्ञ हवन ,बंधन प्रयोग करना आदि कार्य होते हैं।
क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र: अश्वनी,हस्त,पुष्य,अभिजीत ये 4 नक्षत्र क्षिप्र संज्ञक नक्षत्र है। इनमे खरीद बेंच ,मंगल यात्रा,स्त्री रति,विधाआरंभ,
संगीत सीखना,औषधि प्रयोग आदि कार्य किए जा सकते हैं।
मृदु संज्ञक नक्षत्र: मृगशिरा, चित्रा ,अनुराधा व रेवती यह चार नक्षत्र मैत्री या मृदु संज्ञक नक्षत्र हैं। इनमे मित्रता करना,संगीत सीखना,स्त्री रमण,नवीन वस्त्र धारण करना ,अलंकार धारण करना आदि कार्य किए जाते हैं।
तीक्ष्ण संज्ञक नक्षत्र : मूल, ज्येष्ठा,आर्द्रा और अश्लेषा यह चार नक्षत्र तीक्ष्ण या दारुण नक्षत्र कहलाते हैं इनमे उग्र कार्य,प्रहार करना,पशु प्रशिक्षण,मुकदमा दायर करना, मारण,मोहन तथा उच्चाटन आदि कार्य किए जाते हैं।
अधोमुख संज्ञक नक्षत्र : मूल, अश्लेषा,कृतिका विशाखा, तीनों पूर्वा,भरणी,मघा यह सब अधोमुख संज्ञक नक्षत्र हैं। इनमे कुआं खोदना,बोरिंग करवाना,नीव खोदना,ज्योतिष सीखना, तृण संचय करना,नदी में छलांग लगाना,पहाड़ से उतरना ,सुरंग निर्माण आदि कार्य किए जाते हैं।
ऊर्ध्वमुख संज्ञक नक्षत्र: आर्द्रा,पुष्य, श्रवण,धनिष्ठा,शतभिषा,तीनों उतरा तथा रोहिणी यह नौ नक्षत्र ऊर्ध्वमुख संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं।
इनमे नौकरी शुरू करना,बड़े पद पर बैठना,मंदिर निर्माण आरंभ,
शपथ ग्रहण,राजतिलक आदि कार्य करना शुभ होता है।
त्रियकमुख संज्ञक नक्षत्र: मृगशिरा,रेवती,चित्रा,अनुराधा,हस्त,स्वाति,
पुनर्वसु,ज्येष्ठा,अश्वनी यह सारे नक्षत्र त्रियक मुख संज्ञक नक्षत्र कहलाते हैं। इसमें पशु खरीदना,हल चलाना,वायुयान सवारी करना,जल यात्रा आदि करना शुभ माना गया है।
ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश पौराणिक(इंजी)
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