ज्योतिषशास्त्र में तिथि,तिथि स्वामी और तिथियों की संज्ञाएँ और उनका महत्व…..




ज्योतिष शास्त्र में जन्म कुंडली फलादेश,मुहूर्त आदि विचार में तिथियों का विशेष महत्व होता है। चंद्रमा की कुल सोलह कलाएं होती हैं। चंद्रमा की एक कला को तिथि माना गया है। इसका चंद्र और सूर्य के बीच के जो अंशो का अंतर है उस आधार पर तिथि मान निकाला जाता है। प्रतिदिन 12 अंशों का अंतर सूर्य और चंद्रमा के भ्रमण में होता है, यही अंतराश का मध्यम मान होता है। अमावस्या के बाद प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियां शुक्ल पक्ष की तथा पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक की तिथियां कृष्णपक्ष की होती है। इस प्रकार जब पूर्णिमा का अंत होता है तब चन्द्रमा की स्थिति सूर्य से ठीक 180 अंश आगे होती है, एवं अमावस्या के अंत में चन्द्रमा सूर्य से 360 अंश आगे हो जाता है। यदि तिथियों की गणना आरंभ की बात की जाए तो वह शुक्ल पक्ष के प्रतिपदा से आरंभ होती है।


तिथि व उनके स्वामी : प्रत्येक तिथि का अपना विशेष महत्व है तथा उस तिथि के एक विशेष स्वामी है जिनकी उक्त दिन पूजा करके उनसे शुभ फल आशीर्वाद प्राप्त किया जा सकता है। जैसे प्रतिपदा के स्वामी अग्नि, द्वितीया के ब्रम्हा, तृतीया की गौरी,चतुर्थी के गणेश,पंचमी के शेषनाग, षष्ठी का कार्तिकेय, सप्तमी का सूर्य,अष्टमी के शिव,नवमी की दुर्गा,दशमी के काल,एकादशी के विश्वदेव,द्वादशी के विष्णु,त्रयोदशी के कामदेव,चतुर्दशी के शिव, पौर्णमासी के चंद्रमा तथा अमावस्या के स्वामी पितर देव है। 


तिथियों की संज्ञाएं : प्रत्येक पक्ष में तिथियों को पांच भागों में विभक्त किया गया है। जिसमे क्रमशः सभी शुभ कार्य हेतु अधम,मध्यम और उत्तम माना है।


शुक्लपक्ष में :

संज्ञाएं

तिथियां

अधम

उत्तम

मध्यम

नन्दा

1,6,11

1

6

11

भद्रा 

2,7,12

2

7

12

जया 

3,8,13

3

8

13

रिक्ता 

4,9,14

4

9

14

पूर्णा 

5,10,15

5

10

15


कृष्ण पक्ष में :


संज्ञाएं

तिथियां

अधम

उत्तम

मध्यम

नन्दा

1,6,11

11

1

6

भद्रा 

2,7,12

12

2

7

जया 

3,8,13

13

3

8

रिक्ता 

4,9,14

14

4

9

पूर्णा 

5,10,15

15

5

10


यही तिथियाँ क्रम से शुक्र, बुध, मंगल, शनैश्चर, बृहस्पति इनके दिनों में हों, अर्थात् शुक्र के दिन नन्दा, बुध के दिन भद्रा, मङ्गल के दिन जया, शनैश्चर के दिन रिक्ता और बृहस्पति के दिन पूर्णा हो तो किये हुए कार्य की सिद्धि करने वाली होती हैं। इस कारण इनका सिद्धा नाम भी है। इसके अलावा रविवार को नन्दा, सोमवार को भद्रा, मंगलवार को नन्दा, बुधवार को जया, बृहस्पतिवार को रिक्ता, शुक्रवार को भद्रा और शनैश्चरवार को पूर्णा मृतसंज्ञक होती है। इनमें कोई शुभ कार्य नही करना चाहिए।

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