ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सभी 27 नक्षत्रों को नौ श्रेणियों में विभाजित किया गया है। जन्म नक्षत्र से गिनकर लगातार नौ तारों को नवचक्र तारा भी कहा जाता है। इन नौ तारों को अलग अलग श्रेणियों में रखा गया है। जिनके नाम क्रमशः जन्म,संपत, विपत क्षेम,प्रत्यरि,साधक,वध,मित्र,अतिमित्र है। नवचक्र तारों का इस्तेमाल मुहूर्त तथा गोचर फल देखने हेतु किया जाता है।
जन्म तारा: जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में हो,उसे जन्म नक्षत्र कहा जाता है। जन्म नक्षत्र से 1,10,19 वाँ नक्षत्र जन्म तारा कहलाता है। जन्म तारा का संबंध देह सुख से होता है। जन्म तारा के ही स्वामी ग्रह की दशा जातक को जन्म के समय प्राप्त होती है। विद्वानों के अनुसार यदि मां और शिशु का एक ही नक्षत्र में जन्म हो तो एक तारा दोष माना जाता है।
संपत तारा: जन्म नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र को संपत तारा माना गया है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है कि यह संपत्ति ,धन सुख,वैभव को बढ़ाने वाला है। जन्म नक्षत्र से 2,11,20 वाँ तारा संपत तारा कहलाता है। यदि पुत्र, पिता के नक्षत्र से दूसरे नक्षत्र में जन्मा हो तो अत्यंत भाग्यशाली माना जाता है।
विपत तारा: जन्म नक्षत्र से तीसरा तारा अनिष्टप्रद माना गया है।
जन्म नक्षत्र से 3,12,21 वाँ नक्षत्र विपद तारा कहलाता है। इस नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा अंतर्दशा में जातक को विघ्न बाधा,क्लेश तथा विपत्ति का सामना करना होता है।
क्षेम तारा: जन्म नक्षत्र से चौथा तारा क्षेम तारा कहलाता है जो की अत्यंत कल्याण कारी माना गया है। इनमे क्रमश 4,13,22 वाँ तारा क्षेम में आते हैं। इस तारे की दशा में जातक स्नेह ,सम्मान,सहयोग तथा खूब संपत्ति अर्जित करता है।
प्रत्यरि तारा: जन्म नक्षत्र से 5,14,23 वाँ नक्षत्र प्रत्यरि तारा कहलाता है। इस नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा में शत्रु बाधा,क्लेश पीड़ा आदि होती है।
साधक तारा: जन्म नक्षत्र से 6,15,24 वाँ नक्षत्र साधक तारा कहलाता है। इसका संबंध जातक के कार्य सिद्धि,लक्ष्य प्राप्ति और सफलता से है।
वध तारा: जन्म नक्षत्र से 7,16,25 वाँ तारा वध तारा कहलाता है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इन नक्षत्र में बैठे ग्रहों की दशा अंतर्दशा में जातक को मृत्यु या मृत्युतुल्य कष्ट प्राप्त होता है।
मित्र तारा : जन्म नक्षत्र से 8,17 और 26 वाँ तारा मित्र तारा कहलाता है। इन नक्षत्र में बैठे ग्रह की दशा में जातक को मित्र सुख तथा सहयोग प्राप्त होता है। पिता के नक्षत्र से 8,17,26 वें नक्षत्र में जन्मा शिशु पिता के लिए सुखकारी,मित्रवत व्यवहार करने वाला होता है।
अतिमित्र तारा: जातक के जन्म नक्षत्र से 9,18 तथा 27 वाँ तारा अतिमित्र तारा कहलाता है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत हो रहा है कि इस नक्षत्र में बैठे ग्रहों की दशा अंतर्दशा में जातक को धन ,मान सम्मान तथा सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।
ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश पौराणिक(इंजी)
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