पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक का स्वभाव, कैरियर, रोग और उपाय

पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक का स्वभाव, कैरियर, रोग और उपाय:
नक्षत्र मंडल में उपस्थित मुख्य रूप से दो चमकीले तारे जो कि पुरुष और प्रकृति के रूप में पुनर्वसु नक्षत्र को दर्शाते है। पुनर्वसु शब्द पुनः+वसु से बना है। जिसका अर्थ है ऊर्जा व शक्ति की पुनः प्राप्ति या पुनः यश, धन प्राप्त होना। ज्योतिषियों ने इस नक्षत्र को शुभत्व की ओर ले जाने वाला तथा प्रगतिशील बताया है। इस नक्षत्र के स्वामी देव गुरु बृहस्पति है तथा अधिष्ठात्री देवताओं की माता अदिति हैं। इसी कारण पुनर्वसु को देवगणों का नक्षत्र माना जाता है। वाणों से भरा हुआ तरकस ही इसका प्रतीक चिन्ह माना जाता है।

स्वभाव : पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे जातक के स्वभाव में देव गुरु बृहस्पति तथा भगवान राम के गुण तथा स्वभाव की झलक देखने को मिलती है। इस नक्षत्र में जन्मे जातक व्यवहार कुशल,शांतचित्त, सत्यवादी व दृढ़ निश्चयी होता है। ये दिखने में मध्यम कद काठी के अनुशासित, धार्मिक व न्याय प्रिय होते हैं। आचार्य वराहमिहिर के मताअनुसार पुनर्वसु नक्षत्र के जातक भाग्यशाली,धीर,गंभीर,ज्ञानी, बुद्धिमान तथा सदाचारी होता है। 

कैरियर: इस नक्षत्र में जन्मे जातक मठाधीश,ज्योतिषी,धर्मगुरु,विदेश व्यापारी,रेडियो, टेलीविजन व दूरदर्शन कलाकार,जमीदारी,गूढ़ विधा ज्ञान,अध्यापक, एस्ट्रोनॉमी, खेल कोच,लेखक,शिल्पकर्म,न्यूजपेपर संपादक,सन्यासी आदि के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करते हैं।


रोग: इस नक्षत्र में जन्मे जातक प्रायः वात से संबंधित दोष,छाती, फेफड़े तथा पेट से संबंधित रोग से ग्रसित देखा जा सकता है। इसके अतिरिक्त इन्हे कभी कभी कान तथा गले से संबंधित समस्याओं से भी जूझना पड़ता है। 

उपाय: पुनर्वसु नक्षत्र में जन्मे लोगो को देव गुरु बृहस्पति, देव माता अदिति तथा मां सरस्वती की पूजा अर्चना अत्यंत लाभकारी सिद्ध होती है। जीवन के कष्टों से मुक्ति हेतु प्रणव मंत्र ॐ का जाप करना चाहिए। जब भी गुरुवार के दिन पुनर्वसु नक्षत्र पड़े तब उस दिन बांस का वृक्षारोपण करें। हरा, पीला तथा सफेद रंग का प्रयोग इन्हे शुभ परिणाम देता है 

ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश पौराणिक(इंजी.)




 


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