नक्षत्र मंडल में सर्प के सिर की आकृति के रूप में दिखने वाले छः तारे अश्लेषा नक्षत्र हैं। इस नक्षत्र के छः तारे जो चक्राकार इन्हे सर्पराज वासुकी के सिर में स्थान प्राप्त है। अश्लेषा नक्षत्र के नक्षत्रपति बुध तथा अधिष्ठित देवता शेषनाग को माना जाता है।
अश्लेषा को ब्रह्म ऋषि वशिष्ठ का वंशज माना जाता है। कुंडलिनी के मूलाधार चक्र का संबंध भी अश्लेषा नक्षत्र से माना जाता है।
स्वभाव: अश्लेषा नक्षत्र में जन्मे जातक आकर्षक व्यक्तित्व के, बुद्धिमान,व्यवहार कुशल,भविष्य दृष्टा तथा प्रतिभाशाली होते हैं।
लेकिन इनमें कुछ बुरी प्रवृति भी देखने को मिल सकती हैं। ऐसे जातक चापलूस,धोखेबाज,कपट कुशल,छिपकर प्रहार करने वाले व स्वार्थी होते हैं। तामसिक या राजसी भोजन के काफी शौकीन होते हैं। धन संग्रह करने में सबसे ज्यादा सफल देखे गए है, यहीं कारण है कि यह कभी कभी कंजूस प्रतीत होते हैं।
कैरियर: अश्लेषा नक्षत्र के जातक कीटनाशक दवाएं, जीवाणुनाशक,विष उपचार,रसायनशास्त्री,दलाल,सपेरा,सर्प पालन,तांत्रिक,नेता,मनोवैज्ञानिक,तंबाकू व्यापार इत्यादि में कैरियर बनाकर सफलता प्राप्त करते हैं
रोग: इस नक्षत्र में जन्मे जातकों को अपच, जोड़ों में दर्द, अल्सर,सिर दर्द,पीलिया, उदर रोग आदि हो सकते हैं।
उपाय: सर्प पूजन व सर्पों को दूध पिलाने से इस नक्षत्र के जातकों के लिए अत्यंत शुभकारी परिणाम देता है। शिव जी के पंचाक्षरी मंत्र का जाप करने से जीवन में आने वाले कष्टों से मुक्ति मिलती है। सफेद, हल्का नारंगी,हल्का पीला,आसमानी नीला रंग का उपयोग शुभ फल प्रदान करता है।
ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश पौराणिक(इंजी)
0 Comments