नक्षत्र मंडल में तीर की नोंक के आकार के दिखने वाले तीन तारे पुष्य नक्षत्र को दर्शाते हैं। ऋग्वेद में पुष्य नक्षत्र को शुभ या मांगलिक तारा कहा गया है। पुष्य नक्षत्र के अधिष्ठाता देवताओं के गुरु बृहस्पति तथा नक्षत्र स्वामी ग्रह शनि को माना गया है। पुष्य का अर्थ है पोषण करने वाला या दिव्य शक्ति प्रदान करने वाला तथा पुष्य नक्षत्र का प्रतीक चिन्ह गाय के थन को माना गया है।
स्वभाव: पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक कर्तव्यनिष्ठ,धर्मनिष्ठ,न्यायप्रिय, उदार,दयालु,आस्थावान व उदार होते हैं। इस नक्षत्र के लोग शारीरिक तौर पर गोलाकार चेहरे के कांति युक्त तथा चौड़ी छाती के पुष्ट दिखने वाले होते हैं। आचार्य वराहमिहिर के अनुसार पुष्य नक्षत्र के जन्मे जातक धनी, मातृभक्त,विद्वान,भाग्यशाली,शांत तथा धर्मभीरू होते हैं।
कैरियर: पुष्य नक्षत्र में जन्मे जातक ज्योतिष विज्ञान,प्रसिद्ध भगवताचार्य,प्राच्यविज्ञान,राजनीति,परामर्शदाता,सांसद,विधायक,
आध्यात्मिक गुरु,जल संबंधित व्यापार,स्वयं सेवक,प्रशिक्षक,सिविल इंजीनियर,शेयर दलाल,मनोचिकित्सक,इवेंट प्लानर आदि को कैरियर के रूप में चुनकर सफलता प्राप्त कर सकते है।
रोग: इस नक्षत्र के जातकों को पीलिया,वात तथा कफ संबंधित विकार और इसके अलावा त्वचा संबंधित रोग हो सकते हैं।
उपाय: श्रुतियों के अनुसार ब्राम्हण,अग्नि तथा गाय में भगवान विष्णु का वास स्थान माना गया है इसलिए पुष्य नक्षत्र के जन्मे जातक यदि गाय की सेवा नित्य करें तथा प्रत्येक पर्व या त्योहारों पर ब्राम्हण को भोजन करवाएं और दक्षिणा भेंट करे तो इन्हे धन,पुत्र,यश तथा मान सम्मान आदि की प्राप्ति होती है। इस नक्षत्र के जातकों को भाग्य वृद्धि हेतु सफेद,पीला,नारंगी,गोल्डन रंगो का उपयोग करना चाहिए।
ज्योतिषाचार्य पंडित योगेश पौराणिक (इंजी)
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